(नागपत्री एक रहस्य-12)
राम भजन देखता है, कि इन सबके बीच पांच नाग रानियां जीवंत होकर हाथों में दीप लिए जैसे किसी का आह्वान कर रही हो,
उनके ना समझने वाले मंत्र, उपचार और संगीतमय पद्य मंत्रमुग्ध कर देने वाले ये, आकाश से एक विशेष रोशनी जलधारा के साथ प्रमुख स्थान पर स्थापित शिवलिंग के ऊपर एक तार से जैसे गंगा की तरह आकाश से पहुंच रहे थे।
असंख्य सितारे और देवता गण उस जलधारा के साथ-साथ आकाश से उतरते, और प्रणाम की मुद्रा में प्रथम पंक्ति में जाकर खड़े हो जाते,
इस क्रम के दौरान अचानक अनेको नागों ने अपने नागमणि हाथ में लिए आगे की और बढ़ाया और देखते ही देखते वे सारे नागमणि उस शिवलिंग के पास एकत्रित होने लगे।
तब तो जैसे एक आश्चर्यचकित होने वाले विशेष आकृति उस शिवलिंग के समक्ष नजर आने लगी, और शंखनाद के साथ मर्दन की आवाज के साथ प्रार्थना शुरू हो गई, कुछ ही पल में ऐसा लगा जैसे महादेव अपने परिवार समेत वहां प्रकट हुए।
चारों और सिर्फ मां मनसा देवी और शिव परिवार के साथ उन राजकुमारियों की जय जयकार सुनाई देने लगी, और देखते ही देखते वह विशाल प्रकाश पुंज तेज रोशनी के साथ एक चमत्कारिक रूप से विलुप्त हो गया।
वे सभी नाग मणि पुनः अपने-अपने नागों के शीश पर सुशोभित होने लगे, सभी यथावत जिस तरह आए थे, उसी तरह नागकुमारियों से शुभाशीष ले वापस लौटने लगे, उस पंक्ति में जैसे आए थे।
जब वह पलशे का वृक्ष नागकुमारियों के नजदीक पहुंचा तो राम भजन की जैसे हृदय गति चरम सीमा पर थी, लेकिन परम संतोष था,
इतना विशाल सौम्य नाग रुप उसकी सोच से परे था, उसकी सारी कल्पनाएं, शिकायत व्यर्थ थी, वह आत्मग्लानि के भाव से शीश नीचे झुका उन नागकुमारियों को प्रणाम कर रहा था।
तभी उसे सुखद और शीतल अनुभव किसी हथेली का प्राप्त हुआ, जैसे किसी ने उसके शीश पर आशीष के रूप में हाथ रख दिया हो, वह निश्चल अपने स्थान पर बैठा रहा, लेकिन उसका मन खुशी से नाचने लगा।
शरीर और आत्मा एकाकार की स्थिति में आ गए, लेकिन तभी मन किया कि एक बार आंखें खोल कर उस स्वरूप को मन में उतार ले, परंतु तब तक काफी देर हो चुकी थी, वह दरवाजे से लौट वापस अपने स्थान पर लौट चुका था, पीछे पलट कर देखने पर वह पांचों दरवाजे अदृश्य हो चुके थे, और वह पलशे का पेड़ अपने स्थान पर आकर पूर्ववत खड़ा था, जिस कमलनुमा आकृति ने उसे ढक रखा था ,वह पुनः खुल गई।
और राम भजन ने देखा कि पर्वत की रोशनी समाप्त हो चुकी है, उसने उतकर सर्वप्रथम उस पलशे के पेड़ को प्रणाम किया, क्षमा याचना की और इस विशेष कृपा का कारण जानना चाहा।
तभी वह गाय का बछड़ा जिसे वह ढूंढता हुआ यहां आया था, उसके सामने आ खड़ा हुआ, और देखते ही देखते छोटे बच्चे का रूप ले वह कहने लगा, राम भजन जिस दृश्य को देखने के लिए तुम्हारे पिता ने हट किया, और अपनी जान गवाई , वह तुम्हें बिना भक्ति के ही उन्हीं के ही सत्कर्मों की वजह से प्राप्त हो गया।
वास्तव में वह भी इस सौभाग्य को आसानी से प्राप्त कर सकते थे, लेकिन एक छलिए ने उन्हें अपने वश में कर तंत्र विद्या का सहारा ले, नाग शक्ति का जागरण कर अपने निज लाभ के लिए उसका उपयोग करना चाहा,
चाहे जैसे भी कहे, तुम्हारे पिता के रूप में स्वीकृति के कारण उन्हें या दुष्परिणाम भुगतना पड़ा, और स्वयं नागराज के द्वारा उन्हें मिली अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा, लेकिन तब भी उन्होंने तुम्हारे पिता को अपनी कृपा से विमुख नहीं रखा।
तुम्हारे पिता के प्राणों को अपने शरण में अपने सम्मुख शरणागत स्थान दिया, जहां वे आज भी अपने परिवार के लिए मंगल कामना करते हैं, और उन्हीं की शक्ति है कि आज तुम्हें इस चमत्कारिक पलशे के पेड़ का हृदय स्थान प्राप्त हुआ।
मुझे खुद जन्म लेकर तुम्हारे गोकुल में आना पड़ा, मैंने ही तुम्हें मेरे पीछे आने को विवश किया, और तुम यह सब अनुभव कर सके।
राम भजन भले ही तुमने प्रभु की भक्ति ना की हो, लेकिन तुम ह्रदय से सदा ही सरल और सच्चे बने रहे, तुमने हर संभव प्रयास कर गरीब और निरीह प्राणियों की मदद की बिना किसी स्वार्थ के यह मैंने स्वयं देखा है।
अब मेरा तुम्हारे साथ कार्यकाल पूरा हुआ, एक समय में तुम्हारे ही पिता के द्वारा उस वृक्ष की रक्षा कर इस स्थान पर लगाया गया था, शो इसने भी आज अपना कर्तव्य पूरा कर दिया, अब हम दोनों ही तुम्हारे पिता के ऋण से आजाद होते हैं, तुम्हारा कल्याण हो।
बस एक बात याद रखना कि संपूर्ण घटनाक्रम का विवरण किसी के भी सम्मुख प्रकट ना करना, इस घटनाक्रम को पराशक्ति नागदेवियों ,शिव कृपा से प्रेरित, पाठक और स्वयं लेखक के अलावा कोई भी ना जान पाए, तुम खुद अपने मुंह से कभी भी इसका उच्चारण करने का दुस्साहस करने का प्रयत्न मत करना, अन्यथा उसी समय तुम मानव देह त्याग दोंगें।
जब से रामभजन वहां से लौटा तो उसने सब कुछ त्याग अपना संपूर्ण समय नागशक्ति की सेवा में लगा दिया, और वह ग्वाले की बजाय भक्त के रूप में पहचाना जाता है, उसकी निरंतर भक्ति दिन-ब-दिन उसमें चमत्कारिक शक्तियां उत्पन्न कर रही थी।
उसने ही स्वयं नाग शक्ति के आने के रहस्य को बुजुर्गों के बीच और सुपात्रों के बीच समय-समय पर प्रकट किया।
जब जब उसे विशेष शक्ति का आदेश प्राप्त हुआ, या जनमानस की विनती पर जब उसने आवश्यक समझा, ना जाने कितने ही लोग दूर-दूर से आकर उनके समक्ष अपनी समस्याओं का समाधान पाते।
सुबह शाम उस मंदिर में पूजा अर्चना उसकी उपस्थिति में पूर्ण की जाती, ऐसा कहा जाता है कि मीठी और खुशबूदार खीर जब वे नाग माताओं के समक्ष रखते हैं, तो वे देखते ही देखते विलुप्त हो जाता है, जो स्वयं उन्होंने उस प्रसाद को ग्रहण किया हो।
फिर उसी पात्र में थोड़ा जल डाल उस जल को प्रसाद में मिला दिया जाता है, जो सभी में प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है, लेकिन हां एक बात अवश्य है कि वहां से प्रसाद लाने की अनुमति किसी को भी नहीं है।
मंदिर की अंतिम सीढ़ी तक पहुंचते तक वह प्रसाद भक्तों के हाथों में होता है, और इसके पश्चात अंतिम सीढ़ी पर आते ही प्रसाद चमत्कारिक रूप से गायब हो जाता है, चाहे अब इसे जो जैसा कहें, लेकिन पराशक्तियों के वचन, नियमों को तोड़ पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है।
क्रमशः .....
Babita patel
15-Aug-2023 01:58 PM
Nice
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